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दान
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जा पापीके संघ सु जानो मैं अब रहि हं नाहीं ॥ १० ॥ संघ चलौंगी देवर तुम्हरे होउं रजिका जाही । संघ त्रियारु भावजकों ले चलो तहांतें सोई ॥ पहुंचो जाय अरनिके माहीं तहां मुनीश्वर होई । तीन प्रदक्षन दै शिर नायो प्रभु मोहि दीक्षा दीजै ॥ ११ ॥ फेरि मुनी तब कैसें बोले धनि तोकौं अब सोई ।
मोपै जिन दीक्षा जाची तो सम और न कोई ॥ दीक्षा दीनी श्री मुनिवरने भयो दिगम्बर सोई । नगन दिगम्बर मुद्रा धारी केस लोंच तब कीनो ॥ १२ ॥ पंच महाव्रत जानै धारो तब चारित्र सु लीनो । भावज और त्रिया पुनि ताकी भई रजिका जाई ॥ पंच महाबत तिन व धारो दुद्धर तप जो कराहीं ।
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कथा
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