Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 83
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दान ४० www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज करोंगो मुक्ति नगरको पाऊं सुक्ख अनेरो ॥ ४ ॥ तवहि भ्रातसों कैसें बालो भ्रात सुनो तुम सोई । जह लछिमी मोकों नहिं चहिये चिंत करौ मति कोई ॥ मै तो जाऊं अरनि मकारा तजहुं परिग्रह सारा || मोपर भ्राता कीजै छिमा अब रहौ निसंक कुमारा ॥ ५ ॥ इतनी कहि करि कुमरा जबही निज महलन मैं जाई । निज त्रियसों तब कैसें बोलो नारि सुनो मनलाई || तुम प्रसाद मै भोग सुकीने छमियो चूक हमारी । मैं तो जाउं अरनिके माही होउं महाव्रत धारी ॥ ६ ॥ तुम तौत्रिय व सुखसों रहियो चिंत करो मति कोई । इतनी सुनि करि नारी बोली सुनियों कंथ हमारी ॥ धन्य जनम अवतार तुम्हरो बाछी बात विचारी । For Private And Personal Use Only कथा ४०

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