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ढार जोगीरासा। इतनी सुनिकरि कुमराजबहीं मनमें बिरकित होई । धृग यह राज अरु लक्ष्मी जानौ जामै सार न कोई॥ किनकी माता किसको पिता अरु किसको पुत्र बनाई। जाके कारन इतनो कीनो सो भ्राता मो नाहीं॥३॥ सबरे कुटुमको पाप कमावै नर्क अकेलो जाई । जब पावै पुनि नर्क बसेरो तहँ कोई साथी नाहीं ॥ ऐसो राज न मोकों चहियै पाऊं दुक्ख घनेरो।
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१ इस कथाके छपाते समय हमको दो प्रतियां मिली थीं सो प्रयः छन्द तो इस कथामें सबही गड़ बड़ हैं परंतु वो सब जहां तक हमारी समझमे आए दोनो प्रतियोसे मिलान कर सम्हार दीने ये छंद उन दोनो ही प्रतियोंमे ठीक पाठ नहीं पाया सो हमा
री समझमे आया तहां तक सम्हारा विशेष पाठकोंसे निबेदन है कि यदि शुद्ध प्रति | कहीं मिले तो उसकी सूचना हमे भी दीजिये गा ता कि दूसरी बार छपाने पर सम्हार दी जायगी।
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