Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 74
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आज्ञा दीनी तब भूपाल । जावौ देश आपने हाल ॥ भूपति दीनो तब पहिराय । बस्त्राऽभरन महा सुखदाय ||५८ || चउरंग सैन दई तब भूप । हय गय रथ बाहन जुअनूप ॥ फिरि यो निज ग्रेह मकार । चलनेको तब भयो तयार ॥ ५६ ॥ Rani पंडित लयो बुलाय | घरी मुहूरत दिन सुधवाय ॥ चलत भयौ तहँ जु कुमार । चतुरंग सैन सजी सुखकार ||६०|| पड़ी छंद । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सवार चलें ताकी सु लार ॥ हयगय बाहन रथ चले सार । गज ऊपर बारी धराय । तापर सवार भयो सुजाय ॥ ६१ ॥ अब नारि चढ़ी चंडोल सार । इस भांति चलो तहंत कुमार ॥ रवी सुतरी बाजैं महान । फहरात चले श्रागें निशान ॥ ६२॥ ठाड़े नकीब बोलें जु सार । ऐसें नृपसंग चलो कुमार ॥ For Private And Personal Use Only

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