Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi
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आज्ञा दीनी तब भूपाल । जावौ देश आपने हाल ॥ भूपति दीनो तब पहिराय । बस्त्राऽभरन महा सुखदाय ||५८ || चउरंग सैन दई तब भूप । हय गय रथ बाहन जुअनूप ॥ फिरि यो निज ग्रेह मकार । चलनेको तब भयो तयार ॥ ५६ ॥ Rani पंडित लयो बुलाय | घरी मुहूरत दिन सुधवाय ॥ चलत भयौ तहँ जु कुमार । चतुरंग सैन सजी सुखकार ||६०||
पड़ी छंद ।
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सवार चलें ताकी सु लार ॥
हयगय बाहन रथ चले सार । गज ऊपर बारी धराय । तापर सवार भयो सुजाय ॥ ६१ ॥ अब नारि चढ़ी चंडोल सार । इस भांति चलो तहंत कुमार ॥ रवी सुतरी बाजैं महान । फहरात चले श्रागें निशान ॥ ६२॥ ठाड़े नकीब बोलें जु सार । ऐसें नृपसंग चलो कुमार ॥
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