Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi
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दान
बहु बात कहै पुनिको बढ़ाय । सो चलत भए तहते सु राय ॥६॥ ३६ / अब चलत चलत कछु दिन विताय। धारापुरमें पहुंचे सु जाय ॥
| नगरीमें खबरि भई सु जाय । पुर” निकसे सब हर्ष लाय ॥६॥
आगें हूँ लीनो तब कुमार । आनंद बढ़ोतिनकों अपार॥ निज महल लै गयो तबै राय । सनमान करोतिनको बनाया॥६५॥ पहिरायो नृपने तब कुमार । फिरि मंत्रीपद दीनो जुसार॥
अब दान तनो फल तरु सुजाना कैसो जो ततछन फलो भान ॥६६॥ | ताते नरनारि सुनो जु सबै । नित दान चतुर्बिधि देहु अबै॥ | इस भांति कुमर जानो जुसार । अायो निज नगरीके मझार॥७॥ दोहा-इस विधिसों जु कुमार अब, आयो नगर मझार ।
और कथन अागें भविक, सुनो सबैनर नारि ॥६॥
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