Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

View full book text
Previous | Next

Page 75
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान बहु बात कहै पुनिको बढ़ाय । सो चलत भए तहते सु राय ॥६॥ ३६ / अब चलत चलत कछु दिन विताय। धारापुरमें पहुंचे सु जाय ॥ | नगरीमें खबरि भई सु जाय । पुर” निकसे सब हर्ष लाय ॥६॥ आगें हूँ लीनो तब कुमार । आनंद बढ़ोतिनकों अपार॥ निज महल लै गयो तबै राय । सनमान करोतिनको बनाया॥६५॥ पहिरायो नृपने तब कुमार । फिरि मंत्रीपद दीनो जुसार॥ अब दान तनो फल तरु सुजाना कैसो जो ततछन फलो भान ॥६६॥ | ताते नरनारि सुनो जु सबै । नित दान चतुर्बिधि देहु अबै॥ | इस भांति कुमर जानो जुसार । अायो निज नगरीके मझार॥७॥ दोहा-इस विधिसों जु कुमार अब, आयो नगर मझार । और कथन अागें भविक, सुनो सबैनर नारि ॥६॥ veeeeeeeeeee For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101