Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

View full book text
Previous | Next

Page 73
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा तब बोली कैसे बरनारि । मेरे बचन सुनो भरतार ॥ अब तौ चलौ देशको कंत । ढील करौ मति चलौ तुरंत ॥५२॥ इतनी सुनिकै तबै कुमार । चलनेको तब करो करार ॥ भूपतिके दरबार सु जाय । कहत भयो नृपकों शिरनाय ॥५३॥ जो देवौ अब अाज्ञा मोय । तौ मैं जाउं देशकों सोय ॥ मोहि लेन अाए भूपाल । तातै दीजै अाज्ञा हाल ॥५४॥ तबही भूपति कैसे कही । कुमर बात तुम सुनियो सही॥ अब जुकही सुकही तुम सोय । फिरि ऐसी कहनो नहिं कोय॥५५॥ तब बोलो कैसें जु कुमार । हो भूपति मेरे हितकार ॥ एक वार तो जाऊं सोय । फिरि आऊं तहँ रहौं न कोय॥५६॥ तब भूपति नै जानी सही । अब कुमार रहनेको नहीं॥ जो हठ करि राखौं अब सोय । निह. भंग प्रीतिमैं होय ॥५॥ VACAN Inavurunumuruvvavaununu AGAVA9 RNAND For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101