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दृष्टि परे तब कुमरके हरषो है मनमाहि । निज त्रियसों कैसे कही अावत हैं मुनिराय ॥दान०॥३॥ तबै नारिं कैसें कही सुनो बलम सुखकार । धन्य भाग हमरो अवै अाए दीन दयाल ॥दान॥३४॥ मुनिवरकों पड़गाइयो दीजै शुद्ध प्रहार । धन्य घरी दिन श्राजुको मुनिबर अाए द्वार ॥दान०॥३५॥ इनतनी सुनिकें कुमरनैं मुनिवरकौं पड़गाहि। नबधा भक्ति तबै करी करिकै तब सुध भाय ॥दान॥३६॥ दोष छयालिस टास्कैिं दीनो शुद्ध अहार । देव दुंदभी तब बजे बरषे फूल अपार ॥दान०॥३७॥ जय जय शब्द जु गगनमें देव करैं जैकार । धन्य भाग तेरो कुमर मुनिकों दयो आहार दान०॥३८॥
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