Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 64
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उचारी ॥ चढ़वाई ॥ ३ ॥ हम जानी नारि सो लयो है घड़ातें खंभासों खँचि विद्याभाजी पुनि तहँ तब काढ़ि तिहारी । ऐसे कुमराने कढ़ाई । ताकी मुसकैं बंधाई । ताक बहु मारु दिवाई || तबहीं। ठग रहि गयो ठाड़ो जबहीं ॥ ४ ॥ दयो है । तब सेठि बुलाय लयो है ॥ I तब कुमरा कैसें कही है । लेउ नारि तिहारी सही है ॥ ५ ॥ नारीसों कहै समझाई । तेरो न्याव भयो कै नाहीं ॥ तब नारि कहै पुनि कैसें । कुमरा सुन बचन जु ऐसें ॥ ६ ॥ अवतार धन्य है तेरो । भरतार मिलायो मेरो || तैनें मेरो शील रखायो । तैने जु न्याव निमटायो ॥ ७ ॥ तियकंथ मिले अब दोई। तहँ जु चले तब सोई ॥ सब कहत सभा नरनारी । जाको मात धन्य अवतारी ॥ ८ ॥ For Private And Personal Use Only

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