Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कथा
AAMAAVACANADAVACAC
हय गय रथ बाहन सजबाय । चलो तहाँतै कोप कराय ॥ २०॥ जब रनभूमि पहुंचो जाय । कोपोअरि तहँतै सु बनाय॥ जुद्ध भयो तिनसों अब सोय। पुन्य बिनासु विजय नहिं होय॥२१॥ | बैरी दाव तब कीनो जबै । लूटी सैन ताकी पुनि तबै॥ । हय गज रथ बाहन सु बनाय। ते लीने सवही जु छुड़ाय ॥ २२ ॥
आयो भजि तबहीं सु कुमार। सो पहुंचो नगरीके मझार॥ | पाई खबरि भूपतिने जबै । सो दरबार बुलायो तबै ॥ २३ ॥
कोप करो नरपतिने सोय । मेरो राज दीनो सब खोय ॥ । तुरतहिं गर्धव लयो मगाय । तापै दयो महसैन चढ़ाय ॥ २४ ॥ । अरु मुख कारो कीनो जबै । बहुत दंड दीनो सो तबै॥
फिरि सब नगरी माहिं फिराय। ताके आगे ढोल बजाय ॥ २५ ॥ | फेरि देश” दयो कढ़ाय । धन लछिमी सब लई लुटाय॥
UAGAURAVAAAAAAA
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101