Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 66
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HARNAMANAVARANAGANA सोरठा-सुन तातै नर नारि , दान चतुर्विधि दीजिये। भव भव सुखदातार, इस भवकों जस लीजिये।। १५ ।। दोहा-राज मन्त्र पद कुमरकों , दयो तबै भूपाल। _ और कथन अागे भविक , सुनो सबै नरनारि॥ १६॥ चौपाई। यह तो कथा यहांई रही । अबतौ धारापुरमै गई । | राज करै सु जसोमति राय । मंत्री है महासैन बनाय ॥१७॥ ताके मंत्र थकी अब सोय । राज चौथाई रहो न कोय ।। | दाव्यो समीपी राजन पान । प्रागें और सुनो व्याख्यान॥१८॥ एक दिवस भूपति जह कही । हो महसेनि सुनो तुम सही। | लीजै सैन सबहि सजवाय । अरि बाटै तिन मारौ जाय॥१६॥ इतनी सुनिक भूपति जबै। सैन सजाई तानै तबै ।। VASANAVANAMAVASAVAVAN For Private And Personal Use Only

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