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HARNAMANAVARANAGANA
सोरठा-सुन तातै नर नारि , दान चतुर्विधि दीजिये।
भव भव सुखदातार, इस भवकों जस लीजिये।। १५ ।। दोहा-राज मन्त्र पद कुमरकों , दयो तबै भूपाल। _ और कथन अागे भविक , सुनो सबै नरनारि॥ १६॥
चौपाई। यह तो कथा यहांई रही । अबतौ धारापुरमै गई । | राज करै सु जसोमति राय । मंत्री है महासैन बनाय ॥१७॥
ताके मंत्र थकी अब सोय । राज चौथाई रहो न कोय ।। | दाव्यो समीपी राजन पान । प्रागें और सुनो व्याख्यान॥१८॥
एक दिवस भूपति जह कही । हो महसेनि सुनो तुम सही। | लीजै सैन सबहि सजवाय । अरि बाटै तिन मारौ जाय॥१६॥ इतनी सुनिक भूपति जबै। सैन सजाई तानै तबै ।।
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