Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 68
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५ IBा तब बोली ताकी बरनारि । मेरे बचन सुनो भरतार ॥२६॥ 12 मारो भ्राता तुम अब सोय । कैसो राज निकंटक होय ॥ 12 में बरजे मानी नहिं कोय ।ताको फल भुगतौ अब सोय॥२णा तातें सुनो सबै नरनारि । बैर भाव छाडौं दुखकार ॥ | समता भाव गहो अब सोय । तासौं पुन्य बट्टै बहु कोय ॥२८॥ दोहा-कुमर दयो कढ़वायकैं , लक्ष्मी लई लुटाय। और कथन श्रागें अबै , सुनो सबै मनलाय ॥२६॥ चौपाई। । एक दिवस भूपति दरबार । बैठो तो सो सभा मझार ॥ एक जौंहरी लयो बुलाय । घने दिननको विरध बनाय ॥३०॥ तासों भूपति कैसें कही । हमरी बात सुनो तुम सही॥ किस विधि राज चले हम सोय। ताको भेद सुनाबहु मोय ॥३१॥ AAAAAAAAABARVASNA For Private And Personal Use Only

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