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दान
कथा
इतनी सुनिक तब राई । मनमें बहुतै सुख पाई ॥ Ma तब भूपतिके मन आनी । जह न्याव करै जु निदानी॥७॥
| कुमरानै घड़ा मगवायो । सो तौ दरबार धरायो॥ २ तब बोलो कैसें कुमार । दोनो बात सुनो अधिकार ॥८॥
जो बैठे घड़ाके माहीं । तहीकी नारि बनाई ॥ 1 इतनी सुनिकै ठग जवहीं । श्रानंद करो मन तबहीं ॥६॥
अब नारि मिली जह मोई । निह● करि जानो सोई॥ तब सेठि कहैं मनमाहीं। अब नारि मिलै मोहि नाहीं॥३००॥ | फिरि विद्याधरने जबहीं । तुछ रूप जु कीनो तबहीं॥ तब बैठो घड़ाके माहीं । देखें नृप चित्त लगाई ॥ १ ॥ तब कुमरा जानी सोई । जहतौ ठग विद्या होई ॥ फिरि तासों कैसे कही है । कढ़िाव घड़ाते सही है॥२॥
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