Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi
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मरन भयो मेरो अब सोय । काहूँतें जह न्याव न होय ॥ ६१ ॥ इतनी सुनिकरि बोलै राय । बज्रसेनिकौं लेउ बुलाय ॥ बाके बुतैं जु निबटै सोय । तौ अब सुजस हमारो होय ॥६२॥ जसबल तुरत दयो पठवाय । सो कुमारकों लायो जाय ॥ देखत सभा उठी हरषाय । सिंहासन लीनो बैठाय ॥६३॥ चालि छंद ।
तब भूपति बोले कैसें । सुन कुमर बात अब ऐसें ॥ जह दीजै न्याव निमटाई | होय सुजस तुम्हारो भाई || ४ || हमरो इतनो जस होई । बाके राजमें निमटो सोई ॥ तब कुमर कहैं फिरि कैसें । महराज सुनो तुम ऐसें ॥६५॥ जह तुच्छ न्याव है सोई । सो तौ निमटै नहिं कोई || जो कहूं अब दीरघ श्रावै तौ कौन ताहि निमटावे ||१६||
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