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संग जांय मेरे जे दोय । तासों सकती करें न कोय ॥७॥ अंत न्याउ लैहों निमटाय । हो महराज सुनो मनलाय ॥ इतनी सुनिक भूपति कही । जसबल संग जु दीजै सही॥८॥ चलति भई तहत सो नारि । देशन देश फिरै दुख भार ॥ जहां जाय तहँ न्याउ न होय ।न्यायनिपुन दीर्ष नहिं कोय॥१॥ बहुत बात को कहै बढ़ाय । जाने मझाए वावन राय ॥ न्याउ भयो ताको नहिं कहीं । रुदन करै अधिको तब सही॥२॥ फिरि मनमें तिय करो विचार । दोन नगर भूपति दरबार ॥ तापर मैं जैहौं अब सोय । जौ बाहपै न्याउ न होय॥२॥ जौ नहिं न्याव करै भूपाल । तो मै प्रान तजौं ततकाल ॥ चलति भई तहँतै अब जोय । द्रोन नगरमैं पहुंची सोय ॥८॥ जब पहुंची नृपके दरबार । बैंचिकरी तानै सु पुकार ॥
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