Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 58
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir VAA | नारि हु जानी निश्चै सोय । आयो बालम मेरो होय ॥६॥ | तौलों नारि पुन्यतै सार । अायो सेठि तबहि ततकोर॥ दोनों ठाड़े एक स्वरूप । मानो सांचे ढरे अनूप ॥६८।। | दोनोंमैं अब झगड़ो होय । ताके प्रांगन ठाड़े दोय ॥ बहतौ कहै मेरी अब नारि । बह कहै मै याको भरतार॥६६॥ नारि देखि अति विस्मय भयो । कह बिधना मोकों निरमयो॥ एक स्वरूप खड़े जे दोय । कह जानै मेरो पति कोय ॥७॥ शीलवती नारी सुखकार । कहति भई तिनसों बचसार॥ दोनो रहो नगरमें सोय । जौलों तुमरोन्याव न होय ॥७॥ न्याउ निबेरे जब भूपाल । सो होसी मेरो भरतार ॥ दोनो महलते दए कढ़ाय । आगे और सुनो मनलाय॥७२॥ नारि चली निजघरतें सोय । संग लए तब ताने दोय ॥ AAVATABACUMBAVANAVAJAVI AAAAAVAT For Private And Personal Use Only

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