Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 53
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा सरMetroM मुनिवर तो बनकौं गए करुनानिधि ते सार। पीछे तब भोजन करो दोनों हैं नर नारि ॥दान॥३६॥ इस विधिसों जब कुमरने मुनिकौं दयो बाहार । ऋषिकरपै कर जब धरो धनि जाको अवतार ॥दान॥४०॥ चौपाई। | भूपकान तब परी अबाज । देव दुन्दभी बाजै अाज ॥ भूपति जानी मनमें सार । काई मुनिकौं दयो अहार ॥४१॥ जय जय शब्द गगनमैं होय । मेरो भाग भयो नहिं कोय ॥ जसबल तुरत दए पठवाय । देखौ कौन तलास कराय ॥४२॥ अायो देखि जब जसबल कही। हो महराज सुनो तुम सही ॥ परदेशी नरनारी दोय । बैठे बनमैं ते अब सोय ॥४३॥ | तिन श्रीमुनिकों दयो अहार । बरषे हैं तहँ फूल अपार ॥ LAV For Private And Personal Use Only

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