Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi
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| इतनी सुनि करिकै भूपाल । मनमें करत विचार सुहाल ॥४४॥ हा मेरे नगरमें फिर फिर गए । काहू भाग न ऐसै भए ।
धनि वह पुन्यवंत नरनारि । चलिक मिलाप करौंमैं सार ॥४५॥
डौंडी नगरमें दई दिवाय । परजा लीनी सबै बुलाय ॥ । मंत्री श्रादि जुरे परधान । चलो मिलनकौं भूपति जान ॥४६॥
. छंद पद्धड़ी। हय गय रथ बाहन चले सार । चवरंग सैन लीनी सु लार ।।
अरबी सुतरी बाजै महान । फहरात चलें आगे निशान॥४॥ | इसभांति नृपति चालो खुसाल । पहुंचो बनमें तसु पास हाल॥
गजकी चिकार सुनी सु जबै । सो डरी नारि ताकी सु तबै॥४८॥ | सो परी पियाके गोदमाहिं । तसु बलम कहै तासों बनाय॥ | मुनिराज अहार दयो जु सोय । चिंता हमकौं तौ कहा होय ॥४६
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