Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir VAAVAVANAVANAAVAAVAVI | इतनी सुनि करिकै भूपाल । मनमें करत विचार सुहाल ॥४४॥ हा मेरे नगरमें फिर फिर गए । काहू भाग न ऐसै भए । धनि वह पुन्यवंत नरनारि । चलिक मिलाप करौंमैं सार ॥४५॥ डौंडी नगरमें दई दिवाय । परजा लीनी सबै बुलाय ॥ । मंत्री श्रादि जुरे परधान । चलो मिलनकौं भूपति जान ॥४६॥ . छंद पद्धड़ी। हय गय रथ बाहन चले सार । चवरंग सैन लीनी सु लार ।। अरबी सुतरी बाजै महान । फहरात चलें आगे निशान॥४॥ | इसभांति नृपति चालो खुसाल । पहुंचो बनमें तसु पास हाल॥ गजकी चिकार सुनी सु जबै । सो डरी नारि ताकी सु तबै॥४८॥ | सो परी पियाके गोदमाहिं । तसु बलम कहै तासों बनाय॥ | मुनिराज अहार दयो जु सोय । चिंता हमकौं तौ कहा होय ॥४६ For Private And Personal Use Only

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