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इस विधिसों सुर राय काढ़ि दए अब दोई। धन्य दान जगमाहिं तासम और न कोई ॥ १० ॥
छंद। अब आधी रैनिके माहीं। दोउ पंथ चले तब जाहीं ॥ जो करम करै सो होई । जाको मेटनहार न कोई॥११॥ वह कोमल अंगन नारी। सेजन की सोवन हारी ।।
धूप देखि बदन कुमिलाई । पाय प्यादे चली सुजाई ॥१२॥ 12 सो कछुक दिननके माहीं। पहुँचे सु द्रोन बन जाई॥
बनहीं में रहैं अब सोई । बैठे नरनारी दोई ॥१३॥ | कुमराको बदन कुमिलानो।श्रांखिनतें नीर बहानो ॥
समझावै कैसें नारी ।पिय बात सुनो सु हमारी ॥१४॥ | संपति जो भस्म भई है । तातै रुदन करो जु सही है।
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