Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा लछिमी जह चंचल होई । इसको पतियारो न कोई ॥ १५ ॥ ६ छिनमें यह भूप बनावै । छिनमें यह रंक करावै॥ । तातै बलमा सुनि लीजै। लछिमीको सोच नहिं कीजै॥१६॥ तुम हातनकी जु कमाई । फिरि अनि मिलै मेरे सांई ॥ इस विधिसों नारि समझावै । कुमाराकौं धीर्य बँधावै ॥ १७॥ 12 फिरि बोली कैसें नारी। पिय बात सुनो जु हमारी॥ B कंकन मो करको लीजै । गहने नगरीमें धरीजै ॥१८॥ A भोजन सांमा मेरे कंत । अब लावौ जाय तुरंत ॥ कंकन ले चालो कुमारा । पहुंचो नगरीके मझार ॥१६॥ कंकन धरो गहने जवहीं ।लामो भोजन सांमा तवहीं॥ असनान करो तब नारी । पुनि करी रसोई त्यारी॥२०॥ जल गालनकी विधि जाने। ईंधन सोधो पुनि ताने । YAVANANDAWAL - For Private And Personal Use Only

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