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दान
कथा
२२
ANNAPNAVARANASANVAR
जित चितबै तित सोय गैल रही कहुं नाहीं। तब बोली बरनारि भई कुमौति जु साँई ॥७॥ तब बोलो सु कुमार नारि सुनो तुम सोई। मनमें धीरज धारि चिंत करो मति कोई॥ जो आयो है काल तौ अब कौन उपाई। उरमें जपि नवकार और सरन कोउ नाहीं ॥ ८ ॥ देव सुनी यह बात धन्य कहै तब सोई। धनि धीरज अब तोयं तो सम अवर न कोई।। बज्र दंडसों हाल फोरि सफील जु डारी। काढ़ि दए सो देव तब दोनों नरनारी ॥६॥ गहने पहिरें नारि तहँ जु बचे अब सोई। अरु लछिमी सु अपार सवही भस्म जु होई॥
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