Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AAVADAV ३ 18| तिन तीन पक्ष कीनो उपास । तव छीन शरीर भयो जु तासु ॥ । भोजनके कारन तबै जान । आए नगरीमैं सो महान ॥५८|| जब दृष्टि परे मुनि अनागार ।निज त्रियसों बोलो तब कुमार॥ कारन अहार नगरी मझार । प्राबै जु मुनीश्वर सुनौ नारि ॥५६॥ इतनी सुनि करिके नारि कही।अब धन्य भाग बालम जु सही॥ यह धन्यधरी दिनअाजु सार। मुनिराज काज अाए अहार ॥६०॥ | इतनी सुनि करिकै तब कुमार। पड़गाहि ऋषीश्वर तहां सार॥ तब तीन प्रदक्षन देय जोय। पुनिनवधा भक्ति करी जुसोय ॥६॥ । तब दोष छयालिस टारि सार। तब दयो हाल मुनिकौं अहार॥ | फिरि जय जय शब्द जु गगनहोय। तहँ देव कहें कैसें जु सोय ॥२॥ अब धन्य भाग तेरो कुमार । तैं मुनि करपै कर धरो सार ॥ | फिरि मुनिती बनौं गए सोय । तहँ ध्यानाऽरूढ भए सुजोय ॥६॥ VAAVAAVAVAVASAAMANABRUAGAON For Private And Personal Use Only

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