Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir WAAVAN श्री मुनिवर मोहि दीक्षा दीजो तासौं पार लगाई ॥८६॥ तब मुनिवर फिरि कैसे बोले धनि भूपति जगमाहीं॥ अाली अंतमें तैनै विचारी तुम सम और जु नाहीं॥ सप्त दिवस तेरी श्राव सुमाहीं बाकी रही है सोई॥ इतनी सुनि करि भूपति जवहीं अति ही बिरकत होई ॥७॥ चौपाई। केस लोंच कीने तब राय । नगन दिगम्बर भए बनाय ॥ पंच महाबत धारे सार ।भयो मुनीश्वर अरनि मझार॥८॥ जाव जीब सन्यास सुधार । त्योगो चरि प्रकार अहार॥ अंत समाधि मरन करि सोय । तजे प्रान शुधभावन होय ॥६॥ पंचम स्वर्ग लयो अवतार । भयो देवपद ताकों सार ॥ 11 तहँके सुख भोगै अब सोय । कहँ लगताको वरनन होय॥६॥ AAAAAAAS - AAVALAVAVA - For Private And Personal Use Only

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