Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है दोहा-इस विधिसों नृपराजकों , भयो देवपद सार ॥ और कथन आगे अबै , सुनो सबै विस्तार ॥११॥ चौपाई । अब भूपति सुत जानौ सोय। नाम जसोमति ताको होय ॥ सोतौ राज करै सुखकार । प्रागें और सुनो विस्तार ॥२|| है। मंत्री पुराने जानो सोय । बज्रसैन, राखे नहिं कोय ॥ सो घर बैठि रहो सु कुमार। कबहूं न जाय नृपति दरबार ॥६॥ | एक दिवस बह दुष्ट गॅमार । गयो हतो नृप सभा मझार ॥ भूपतिसैं तब कैसे कही । हो महराज सुनो तुम सही ॥४॥ मेरो लघु भ्राता भूपाल। श्रावन पाय नहीं दरबार॥ 12 बहती राज बिनाशन हार । निह● जानौ तुम भूपाल ॥६५॥ जो अब हुकुम तिहारो होय ।बाको करौं उपाय जु सोय ॥ AVACADAVOURVAVA AVWAVABOAVAVAR For Private And Personal Use Only

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