Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दान १९ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जोगीरासा । इतनी सुनि करि भूपति जबहीं मनमें विरक्ति होई ॥ धृग लछिमी यह राजसु जानौ जामें सार न कोई || माता मोहि पाप जु लागे छाडें अपजस होई ॥ जहतौ राज नरकगति देई जामें फेर न कोई ॥ ८४ ॥ किसको पुत्र पिता किसको किसके बाँधव भाई ॥ सबरे कुटुमकों पाप कमाबै नर्क केली जाई ॥ ऐसो राज न मोकों चहियें भृमाँ चतुर्गति माहीं ॥ राज करोंगो मुकति नगरको भूपतिके चित आई ॥ ८५ ॥ जेठे सुतको राज सु दीनो नृपने नीति विचारी ॥ सब जीवनस मागि क्षमा अब पहुंचो अरनि मकारी ॥ श्री सौधर्म मुनीश्वर के बजाय चरन शिर नाई || For Private And Personal Use Only कथा १९

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