Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घने जीव मारै अधिकाय । आज पकरि पायो है ताहि ॥ ७८ ॥ इतनी सुनिकरि भूपति जबै । क्रोध करो तापर सो तबै ॥ जसवल लीने तबै बुलाय । हुकुम करो कैसें तब राय ॥७६॥ प्राण हरो जाके अब सोय । चन इक ढील करो मति कोय ॥ तब जसबल बोलो करजोरि । हो महाराज सुनो सु बहोरि ||८०|| तुमरे हुकुमतैं मारों सोय । पाप लगे मारेको तोय || इतनी सुनिकै भूपति कही । होय पाप तो बांड़ौ सही ॥ ८१ ॥ तब जसबल बोलो करजोरि । हो महाराज सुनो सु बहोरि ॥ तौ तुमहीं कौं पाप अपार । न्याउ नहीं नृपके दरबार ॥८२॥ फिर ऐसोई काम कराय । मूसिनगर जिय घात कराय ।। दोऊ विधि तुमहींकों पाप । सोई करो हुकुम जो श्राप ॥ ८३॥ For Private And Personal Use Only

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