Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
AAVAADAV
18 तबहि दुष्ट फिरि कैसें कही। फिरिक मारौ वाकों सही ॥६॥al ३ तब बोली कैसे बर नारि । मेरे वचन सुनो भरतार ॥ B कहा कुमति उपजी तुम्हे श्राय । क्यों अब वृथां जु पाप उपाय॥७०॥ 12 जाके करसों श्री ऋषिराज । लयो अहार सुधर्म जिहाज॥
सो किसहूको मारो कंत । वह मरनो अब नाहिं महंत ॥७॥ 18 इतनी सुनिकरि तबै कुमार । कहत भयो सुनियो वरनारि॥ | मारौं बाय भुलै करि सोय । ताको ढील करौ मति कोय ॥७२॥
ढार अहो जगति गुरुकी। तब बोली बरनारि, कंथ सुनो तुम सोई । सांच कहौं अब बात, तामैं झूठ न होई ॥ मेरे भरोसें कंथ, अब रहियो मति कोई । मोपैतौ भरतार , अब ऐसी नाहिं होई ॥ ७३ ॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101