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दान
कथा
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चाहें तो कोट चिनाउ , चाह सूरी धरदीजै । चाहौं तो भरतार , घरसे काढ़ सु दीजै ॥ इतनी सुनिक कुमार ,जानि लई मन माहीं।
मैहीं करौं उपाय , जह करने की नाहीं ॥ ७४ ॥ दोहा-इस विधिसों भावज तबै , दिवरा लयो बचाय । धन्य नारि जे जगतिमें , करुना तिन मनमाहिं।। ७५ ॥
चौपाई। यहतो कथन रह्यो इस ठौर । आगे कथन सुनो अब और॥ एक दिवस जसुभद्र सु राय । वैठो तो सो सभा लगाय ॥६॥ चोर एक पकरो कुतवाल । नृपदरबार सु लायो हाल॥ तब भूपति सों कैसे कही । हो महाराज सुनो तुम सही॥७॥ घने दिवसको तसकर सोय। मूसे नगर जानै सब कोय ॥
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