Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान कथा आखिर अबला यह नारि होय। छिनमें पुनि प्रघट करै जु सोय।।५२॥ है। तबहीं सु नारिसों कहै सोय । इसको फिरि भेद बताउं तोय॥ तुम करसु रसोई करौ त्यार । तो मैं भोजन तब करौसार ॥५३॥ | चतुरंग नारि जानी जुसोय । कछु भ्रात उपाय करो जु कोय॥ मुझ बलम बात मोसों छिपाहि। ताको हठ फिर कछु करोनाहि॥५४॥ जे चतुर नारि जानौ जु सोय । पति हठपर हठ नहिं करै कोय॥ 18| असनान करे ताने जु सार । पुनि करी रसोई तबै नारि ॥५५॥18 तब सोधि बलीता नारि जबै । जलगालनकी विधि जान सबै ॥ सो क्रिया शुद्ध जानौ सुनारि। तब करी रसोई तबै त्यार ॥५६॥ तब करिके रसोई त्यार भई । देखौ पुन्यतनो फल कैसोकही। सौधर्म मुनीश्वर तहां सार । ताही बनमें तप करत हाल ॥५७॥ For Private And Personal Use Only

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