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BI चंदन चौकी दई डराय । कंचन थार परोसोबाय॥४७॥
पट रस श्रादिक व्यंजन जानि। तवै परोसो भोजन प्रानि ॥ दया अंग ताके है सोय । देखत बनो न तापै कोय॥४८॥
छंद पद्धही। | जब ग्रास उठायो तब कुमार। भावज कर पकरो तबै हाल ॥
फिरि कहै दिवरसों तबै सोय । जे विष भोजन मति करौकोय॥४६॥ | तुम भ्रात करो मारन उपाय । मेरे बसकी कछु रही नाहिं ॥
इतनी सुनि करिकै तब कुमार। उठि ठाडो तब हूबो सु हाल ॥५०॥ | निज महलनमें तब गयो सोय। तसु नारि कहैतासों जु सोय॥
कह मलिन चित्त बालम सु अवै। इसको मोहि भेद सुनाउ सबै॥५१॥ | मन माहिं विचारै तब कुमार। कह भ्रात दोष भाषौं जुसार ॥
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