Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AVANORAMANORANAVARAVANAVARANADA BI चंदन चौकी दई डराय । कंचन थार परोसोबाय॥४७॥ पट रस श्रादिक व्यंजन जानि। तवै परोसो भोजन प्रानि ॥ दया अंग ताके है सोय । देखत बनो न तापै कोय॥४८॥ छंद पद्धही। | जब ग्रास उठायो तब कुमार। भावज कर पकरो तबै हाल ॥ फिरि कहै दिवरसों तबै सोय । जे विष भोजन मति करौकोय॥४६॥ | तुम भ्रात करो मारन उपाय । मेरे बसकी कछु रही नाहिं ॥ इतनी सुनि करिकै तब कुमार। उठि ठाडो तब हूबो सु हाल ॥५०॥ | निज महलनमें तब गयो सोय। तसु नारि कहैतासों जु सोय॥ कह मलिन चित्त बालम सु अवै। इसको मोहि भेद सुनाउ सबै॥५१॥ | मन माहिं विचारै तब कुमार। कह भ्रात दोष भाषौं जुसार ॥ RVASANAPURVAVVVVANA For Private And Personal Use Only

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