Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जसबल तबहीं लयो बुलाय । तासौं हुकुम करो सु बनाय ॥३६॥ देवर हैं नृपके दरबार । तिनहिं सुल्यावौ अब ततकार। 1 इतनी सुनिकरि जसबल गयो । जाय कुमरसौं कहतो भयो॥३७॥ भावजनै बुलवायो तोय । चलौ ढील कीजै नहिं कोय॥ है। इतनी सुनिक तबै कुमार । चलत भयो तहँ ततकार ॥३८॥ सो आयो निज ग्रेह मझार । तब असनान करै सुकुमार ॥ फिर पहुंचो जिन मंदिर माहिं । श्रीजिनवरके दर्श कराहि॥३६॥ फिर आयो निज गृह अब सोय। भावज पास पहुंचो जोय ॥ | तब भावज बोली सुखकार। भोजन करि लीजै सु कुमार ॥४०॥ तबहि कुमर फिरि कैसें कही । भावज बात सुनो तुम सही॥ मेरो भ्रात कहां अब सोय । बा बिन भोजन करौं न कोय।॥४१॥ -AVAAAVACANCAVAAG SenneKKesariha ranwere For Private And Personal Use Only

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