Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । 1 जो दिवरा साथी होई । मेरो हुकुम न पालै कोई ॥ जो होय हमारी नारी । मेरी होबै श्राज्ञाकारी ||२६|| मारौ विष दै करि सोई । नहिं कोट चिनाऊं तोही ॥ इतनी सुनिकें तब नारी । जाने रुदन करो है भारी ||२७|| नैनन चले आंसू जाके । अति सोच हृदयँ भयो ताके ॥ मनमै सु विचारत एसें कौन बात करों में कैसें ॥२८॥ जो मारौं दिवरै सोई । मोकौं पाप सघन प्रति होई ॥ अरु जो मारों मैं नाहीं । मोकौं दोष लगाबे सांई ॥२६॥ जाकौं कौन कुमति श्रव थाई । जाके पाप हृदय गयो बाई ॥ ऐसें बह रुदन करती | कहुं नेक न धीर धरती ||३०|| तब बोली कैसें नोरी । पिय बात सुनो सु हमारी ॥ 1 For Private And Personal Use Only

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