Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi
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विष दै करि मारौ सोई । करौ और विचार न कोई॥ 18| फिरि कैसें नारि समझाबै । तासों कैसें बतलावै ॥१५॥ ३ भ्राता मारै मेरे कंथा । जु रि टूटै बांह तुरंता॥
करि बैरी अकेलो पावै । बहुतै तब कोप करावै ॥१६॥ फिर जन्म धरो मेरे सांई । ऐसो भ्रात मिलै कहुं नाहीं॥
कछु पूरब पुन्य कमायो । ऐसो भ्राता तुम पायो॥११॥ 1 तातै बलमा सुनि लीजै । ऐसी बात न कबहूं कीजै॥
फिरि बोलो दुष्ट जु कैसें । बरनारि सुनो तुम ऐसें ॥१८॥
बहु कहैं कहा अब होई । मारौ विष दै करि सोई॥ 13 तब बोली कैसे नारी । पिय बात सुनौ सु हमारी ॥१६॥ 18) पुत्रहुको मरन जु होई । फिरि देय विधाता सोई॥
VANAGAURAVASANAVANA
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