Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दान ११ www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज मंत्रपद ताकों दयो । सबके ऊपर सिर मुख भयो । पुन्यथकी किमि किमि नहिं होय । पुन्य समानञ्चवरनहिं कोय ॥६६॥ इस विधि बज्रसैन कुमार । भोगें भोग तहां सुखकार ॥ भूप करै जु बड़ो सनमान | सौंपो राजको सबरो काम ||१००|| राज मन्त्रपद पायो सोय । सब पर हुकुम जु ताको होय ॥ जेठे भ्रातको राखै मान । हुकुम करै ताको परमान ॥ १ ॥ बहतौ जानौ दुष्ट गमार । लघुसों माने दोष अपार ॥ ऐसें रहत बहुत दिन गए । आगे सुनो जु कारन भए ॥ २ ॥ एक दिवस जेठो जु कुमार । मनमैं कैसो करत विचार ॥ लघु भ्राता मेरो जह सोय । सब पर हुकुम जु ताको होय || ३ || भूप करै ताको सनमान | वाको आदर जगमें जान ॥ For Private And Personal Use Only कथा ११

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