Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
दान
१०
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
1
1
इतनी सुनिकें भूपति जबै । बज्रसैन बुलवाए तवै ॥ तबहीं भूपति कैसें कही । लेउ पितापद तुम व सही || तब कुमार बोलो करजोरि । हो महराज सुनो सु बहोरि ॥ जेठो भ्राता तात समान । ता श्रागें मोहि जोग न श्रान ॥८॥ विनहींकों दीजै भूपाल । हुकम करौं तुमरो दरहाल ॥ इतनी सुनिकें भूपति जबै | अधिक प्रसन्न भए सो तबै ॥६०॥ तुरत लयो महसैन बुलाय । सो भूपति दीनो पहिराय ॥ छपनकोटि जाके दीनार । ताको स्वामी करो ततकाल ॥ ६१ ॥ दयो सेठिपद ताकों सोय । यागें और सुनो जो होय ॥ व जानौ बज्रसेनि कुमार । नित जावै नृपके दरबार ||६|| साधै हुकुम नृपतिको सोय । भूपति अधिकप्रसन्न सु होय ॥
For Private And Personal Use Only
कथा
१०

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101