Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शेष खगेश महेश जु सोय । कालके बसमें हैं सब कोय ॥८॥ 18| इस विधि समझाए सु कुमार । दई दिलासा तब भूपाल ॥ सेठिके तनकों दग्ध कराय । निजनिजघरपहुँचेसब जाय ॥२॥ दोनौ भ्रत रहैं अब सोय । निज निज टेव न छाडें कोय॥ | इस विधिसों जु कछू दिन गए । श्रागें और जु कारन भए ॥४॥ एक दिवस भूपति दरवार । बैठो तो जो सभा मझार ॥ | मंत्रिनसौं तब भूपति कही । हमरी बात सुनो तुम सही ।।५।। पुत्र सेठिके हैं अब दोय । कहौ तातपद किसकों होय ॥ ६ तब मन्त्री बोलें करजोरि । हो महराज सुनो सु बहोरि ।।६।। न्याय रूप तो ऐसो होय । जेठे सुतकों दीजै सोय ॥ अरु लहुरो चतुरंग अपार । चाहौं ताहि देहु भूपाल ||८|| VAVARAVASAVAVALA AAAAAVAAD For Private And Personal Use Only

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