Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi
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| एक दिवश जुबनिक बुलवाय । तासों तब कैसें बतलाय ॥
आदर बहुत करो सनमान । बहु विधि दीनो बीरा पान ॥३६॥ तबहि बनिकसों कैसें कही । हमरी बात सुनो तुम सही॥ तुमपर कछु हम मागें जोय । अब हमकों दीजै तुम सोय ॥३७॥ तबही बनिक बोलो कर जोरि । सेठि बचन तुम सुनौ बहोरि॥ तुम लायक हमपै कह होय । जो मो पर जाचत हौ सोय ॥३८॥ | तबही सेठि फिरि कैसे कही । हमरी बात सुनो तुम सही ॥ | तुमरे घर पुत्री है सार । हम सुतकों परनो सुखकार ॥३६
छंद गीता। करजोरि करि तब बनिक बोलो सेठि सुनो मन लायकें। कोटी जु ध्वज तुम साहु जानौ मै दरिद्रो आयकें।
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