Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । - meeeeeeeeeeeeeeeeeeer | एक दिवश जुबनिक बुलवाय । तासों तब कैसें बतलाय ॥ आदर बहुत करो सनमान । बहु विधि दीनो बीरा पान ॥३६॥ तबहि बनिकसों कैसें कही । हमरी बात सुनो तुम सही॥ तुमपर कछु हम मागें जोय । अब हमकों दीजै तुम सोय ॥३७॥ तबही बनिक बोलो कर जोरि । सेठि बचन तुम सुनौ बहोरि॥ तुम लायक हमपै कह होय । जो मो पर जाचत हौ सोय ॥३८॥ | तबही सेठि फिरि कैसे कही । हमरी बात सुनो तुम सही ॥ | तुमरे घर पुत्री है सार । हम सुतकों परनो सुखकार ॥३६ छंद गीता। करजोरि करि तब बनिक बोलो सेठि सुनो मन लायकें। कोटी जु ध्वज तुम साहु जानौ मै दरिद्रो आयकें। AAVAVAAVAAAAAVAVAN For Private And Personal Use Only

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