Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कूच करो तहत अब सोय । दिन अरुरातिगिनैनहिंकोय ॥६॥ चलत चलत जब कछु दिन गए । धारापुरमैं पहुँचत भए । हा पहिले श्रीजिन मंदिर जाय । वरकन्याकौं धोक दिवाय ॥७॥ ही वसु विधि पूजे श्रीजिनचंद । जाते कटें करमके फन्द ।। फिर घर मैं बहु लीनी सार । जुवती गावें मंगलचार ॥७॥ है। जाचक जनकों दान सु दयो । सज्जनको सनमान सु लयो॥ इस विधिसों घर आये सार । अनंद बधाए होत अपार ॥७२॥ दोहा-इस विधिसों अब व्याह करि , निजघर आए सोय । और कथन प्रागें सुनो , जो कछु जैसो होय ॥७॥ जेठो लघु दोनो कुमर , व्याहि लए सुखकार । और कथन आगे भाविक , सुनो सबै विस्तार ॥७॥ PAVANAVASAVAN MAVAAAAAAAAAV For Private And Personal Use Only

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