Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दान ७ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सब सोभा जु बरनि करि कहीं। बढ़े कथा कछु अंत न लहौं ||५८ || चलत चलत जब कछु दिन गए । महापुरी में पहुँचत भए । डेरा बागन दीने जाय । तहां निसान रहे फहराय ॥ ५६ ॥ नेगचार तहँ वह विधि भए । थरु षटरसके भोजन दए || एक पहर निशि बीती जबै । सुभ बारौठो कीनो तबै ॥ ६०॥ हय गय रथ बांहन सजवाय । चउरेंग सैन सजी सुखदाय ॥ अरबी तरी तहँ बजवाय | नौबतिखानो दयो झराय ||६१ || तुरही सुरही अरु करनाल । तूर मृदंग झांझ धुनि ताल ॥ आतसबाजी छूटे सोय । बाजनके कुहराम जु होय || ६२ || इस विधिस दरवाजें जाय । बरकों देखि सेठि सुखपाय ॥ सोभो दीनो अधिक अपार । कौन कहै ताको विस्तार ||६३ || For Private And Personal Use Only कथा

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