Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विप्र विदा कीनो पुनि जबै । दयो अतुल धन ताक तबै ॥ चलत भयो तहँ व सोय । दिन रुरातिगिने नहिंकोय ॥ ५४ ॥ चलत चलत जब कुछ दिन गए । महापुरीमें पहुँचत भए । सब वृत्तान्त कहो समझाय । सुनिकरि सेठिपरमसुख पाय ।। ५५|| सोरठा । मुहूरत दिन सुधवाय, सुभ लगुनै पठवाइयो । और सुनो मनलाय, जैसो कथन जुयाइयो || ५६ ॥ चौपाई |
टीका दिन पहुँचो जब प्राय । तब तहां सजी बरात बनाय ॥ हयगय रथ बाहन करि सार । चउरंग दल साजे सवार ||५७|| अरवी सुतरी अरु करताल । तूर मृदंग भेरि कंसाल ॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101