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कंचन कलश दए तहँ सोय । खासा मलमल यादिक होय ॥
माल
कुंडल कड़े दीने सुखकार । अरु दीने गजमोतिन हार ||६४ || खजाने दीने सोय । कहँ लौं ताको बरनन होय ॥ फिर ये निज डेरन माहिं । अनँद बधाए भए बनाय || ६५|| बहुत बात को कहै बढ़ाय । राखे तीन दिवस बिरमाय ॥ चौथो दिन लागो पुनि जबै । भई बरात विदा सो तबै ॥ ६६ ॥ पुत्रीको समझावै तात । सुन लीजो अब हमरी बात | कुलकी टेक चलो तुम सोय । जासौं मेरी हँसी न होय ||६७ || तुम जेठी जो कोउ होय । भूलि न उत्तर दीजो कोय ॥ | सासु हुकम तुम सिर पर धरौ। यह आज्ञा मेरी चित धरौ ॥ ६८ ॥ इस विधि सीख तात जब दई । पुत्री चितमें सब धरि लई ॥
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