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कथा
दान
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जेठेके आगे लघुकों व्याहौं पिता धरम यह है नहीं। तातें जु पहिलै जेठो परनौ तब लघुकौं ब्याहौ सही ॥३१॥
चौपाई। एसो मनमें करत विचार । प्रागें और सुनौ बिस्तार ॥
जन्म दरिद्र बनिक इक जानि । सो परदेशी कहो वखानि ॥३२॥ | ताकें एक सुता अब सोय । षोड़स बर्ष तनी जो होय ॥ | पूरब पाप उदय अब जानि । दारिद्रीकें जनमी प्रानि ॥३३॥ | रूपवान जानौ अब सार । शीलवती गुनकी अधिकार ॥
सो आयो धारापुर माय । श्रागें और सुनौ मनलाय ॥३४॥ है। सेठि सुनी जह खबरि जुसार । मनमें कैसो करत विचार ॥
कछुक द्रव्य अब दै करि सोय । जेठे सुतकों परनो सोय ॥३५॥
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