Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा दान NAVAIVAVVVVVVNAVPRAVA जेठेके आगे लघुकों व्याहौं पिता धरम यह है नहीं। तातें जु पहिलै जेठो परनौ तब लघुकौं ब्याहौ सही ॥३१॥ चौपाई। एसो मनमें करत विचार । प्रागें और सुनौ बिस्तार ॥ जन्म दरिद्र बनिक इक जानि । सो परदेशी कहो वखानि ॥३२॥ | ताकें एक सुता अब सोय । षोड़स बर्ष तनी जो होय ॥ | पूरब पाप उदय अब जानि । दारिद्रीकें जनमी प्रानि ॥३३॥ | रूपवान जानौ अब सार । शीलवती गुनकी अधिकार ॥ सो आयो धारापुर माय । श्रागें और सुनौ मनलाय ॥३४॥ है। सेठि सुनी जह खबरि जुसार । मनमें कैसो करत विचार ॥ कछुक द्रव्य अब दै करि सोय । जेठे सुतकों परनो सोय ॥३५॥ ANANAVAVASANAVAJAVAVVAVAVI For Private And Personal Use Only

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