Book Title: Chaityavandan Bhashya Prashnottari
Author(s): Vignanjanashreeji
Publisher: Jinkantisagarsuri Smarak Trust

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Page 19
________________ प्र.11 . लौकिक मंगल-पीली सरसों, पूर्ण कलश, वंदन माला, छत्र, श्वेत । वर्ण, दर्पण, हय राय आदि को मंगल कहने का क्या कारण है ? पीली सरसों - व्रत, नियम, संयम आदि गुणों के द्वारा साधित जिनेश्वर घरमात्मा को समस्त अर्थ की सिद्धि हो जाने से, परमार्थ से उन्हें सिद्ध संज्ञा प्राप्त होने से सिद्ध कहा जाता है। सरसों, जिसका अन्य नाम सिद्धार्थ . होने से नाम की अपेक्षा से इसे मंगल माना जाता है.। . . पूर्ण कलश - अरिहंत परमात्मा सम्पूर्ण मनोरथों तथा केवलज्ञान से पूर्ण हैं, इसलिए लोक में पूर्ण कलश को मंगल माना जाता है। वंदनमाला - द्वार से बाहर निकलते और प्रवेश करते समय 24 तीर्थंकर परमात्मा वंदनीय होते हैं, इसलिए भरत चक्रवर्ती ने 24 कलियों वाली वंदनमाला की रचना की थी। इसी कारण वंदनमाला मंगल कही जाती है। छत्र - सृष्टि के समस्त जीवों को मुक्ति दिलाने के लिए अरिहंत परमात्मा छत्राकार अर्थात् एक मात्र आश्रय है, इसी कारण छत्र को मंगल कहा गया है। श्वेतवर्ण - अरिहंत परमात्मा का ध्यान और उनकी लेश्या शुक्ल (श्वेत) होते हैं, इसलिए लोक में श्वेत वर्ण को मंगल माना जाता है । दर्पण - जिनेश्वर परमात्मा को केवलज्ञान में जिस प्रकार समस्त लोकालोक दिखाई देता है, उसी प्रकार दर्पण में भी उसके समक्ष रहने वाले दूर व निकट के समस्त छोटे - बड़े पदार्थ दिखाई देते हैं, इसीलिए दर्पण को मंगल कहा गया है। ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ मंगलाचरण का कथन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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