Book Title: Bhuvanbhanu Kevali Charitram
Author(s): Indrahans Gani
Publisher: Vitthalji Hiralal Hansraj
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________________ भुवन // 8 // DEEET HDHINDE HD Taalaa MDHEREILD मादयति महर्द्धिकदेवेषु, प्रापयति सुमानुषेषु, उपलंभयति बोधि, सुस्थीकरोति राज्यैश्वर्यसोभाग्यपूज्यत्वा-II नरि दिभिः, प्रवर्तयति सद्धर्मक्रियासु, पुनर्नयति महार्द्धिकदेवेषु. इत्येवं सुखयत्येष / भववासेऽपि देहिनः // | पर्यते प्रापयेन् मोक्षं / हितस्तेषामयं ततः // 1 // इत्येवं द्वे इमे सैन्ये / सदैवावस्थिते तयोः // सुखदुःखार्थे / रणं नैव निवर्तते // 2 // कालोऽनंतस्त्वतिक्रांत / एतयोयुध्यमानयोः // जयः पराजयश्चेह / / कदाचित् कस्यचिन्मतः // 3 // गरीयान् येन तेभ्योऽपि / त्रैलोक्यस्यापि नायकः // राजा कर्मपरिणामा - -भिधोऽस्तीह महर्द्धिकः // 4 // शुभाशुभादिरूपेण / विचित्रोऽसौ निगद्यते // अलक्ष्यः स्थूलबुद्धीनां समक्ष्यो योगिनां मतः // 5 // भ्रातासौ मोहराजस्य | ज्येष्टो लोकस्थितिलघुः // भर्ता कालपरिणत्याः / / समर्थो नाटकप्रियः // 6 // तथाहि-देवानप्यसो गर्दभयति, गर्दभानप्यमरयति, तिरश्चोऽपि नारक-18 यति, नारकानपि तिर्यगयति, द्विरदानपि कीटयति, कीटानपि द्विरदयति, चक्रिणोऽपि रंकयति, रंकानपि नरेंद्रयति, ईश्वरानपि निःस्वयति, निःस्वानपि क्षणादीश्वरयति, नीरुजोऽपि सद्यः सरोगयति, सरोगानपि प्रगुणयति, सशोकानपि निःशोकयति, निःशोकानपि सशोकयति, सुखिनोऽपि दुःखयति, / दुःखितानपि सुखयति. // 8 //

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