Book Title: Bhuvanbhanu Kevali Charitram Author(s): Indrahans Gani Publisher: Vitthalji Hiralal Hansraj View full book textPage 9
________________ भवन चरित्र // 7 // TEED TO I amolana aaor a निक | कलत्राद्यनुरागनिगडैः, ततः पातयति समृद्धिभ्यः, जनयत्यमाहात्म्यं, उत्पादयति दीनता, संपादयति | शौच्यता, नयति दुर्गति, क्षिपति महानरकेषु, आनयति तिर्यक्षु, प्रापयति कुमानुषेषु, विडंबयति तत्र | दारिद्र्यदोर्भाग्यपरपरिभवादिविडंबनाभिः, प्रवर्तयति पापक्रियासु, पुनर्गमयति नरकादिषु. ___इत्येवं भ्रमयत्येष प्राणिनो भवसागरे दुःखौघपीडितान्, तेन तेषामेषोऽहित उच्यते. कोपाहंकारलोभायै-रनंतं कटकं च यत् // तस्याज्ञाकारिभूतानां / तदेवाहितदं सदा // 1 // राजा चारित्रधर्माख्यो। धर्मसैन्यस्य नायकः // सम्यग्दर्शनसबोध-सदागमशमार्जवैः // 2 // गांभीर्यमार्दवौदार्य-सत्यशोचद-न मादिभिः // अनंतसुभयुक्तो / जीवानां हित एव सः // 3 // युग्मं // तथाहि-जनयत्यसौ देवेष्वेव न देवबुद्धिं, गुरुष्वेव गुरुमति, तत्वेष्वेव तत्वचिं. त्याजयत्यवस्तुषु प्रतिबंध, प्रवर्तयति सक्रियासु, रक्षय- त्यात्मवत्समस्तभूतग्राम, परिहारयत्यनृतं, निवारयति स्तेयं, निषेधयत्यब्रह्म, शिथिलयत्यारंभपरिग्रहबुद्धिं, न व नियमयति रात्रिभोजनं, भूषयति प्रशमेन, मंडयति मार्दवेन, समलंकरोत्यार्जवेन, तर्पयति संतोषेण, | व मोचयति निबिडस्नेहबंधनात दलयत्यनुरागनिगडानि, इहाप्यारोपयति महासमृद्धत्वे, जनयति गुरुतां, H स्थगयति समस्तलघुतां, संपादयति सर्वजनश्लाघ्यतां, नयति सुगति, निरुणद्धि नरकतिर्यग्गती, उत्पा- DDDDDEDDDDDDDDDDDDDDD 7 //Page Navigation
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