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"अभावे शालिचूर्ण वा शर्करा च गुडस्तथा ।" के रूपमें आप लोगों के समक्ष मैंने उन्हें ला. रखा। यदि इस कार्यको कोई इसी क्षेत्रका धुरन्धर विद्वान अपने हाथमें लेकर इस विषय पर कोई उत्तम पुस्तक लिखता तो हिन्दी जगत्का बहुत कुछ उपकार हो सकता था । इस विषयके ज्ञाता यदि इसकी त्रुटियों तथा नये समावेश होने योग्य विषयोंका मझे सूचना देंगे तो इसके द्वितीय संस्करणमें यदि उचित समझा गया तोसुधार या वृद्धि कर दी जावेगी।
इस विषय पर जहाँ तक मेरा अनुमान है भारतीय भाषाओं में कोई पुस्तक नहीं है । संभवतः यह पहली ही पुस्तक हिन्दी भाषामें है । इस विषयकी अँगरेजी भाषामें अनेक पुस्तके भरी पड़ी हैं । जितनी मैंने देखी हैं उनकी नामावली आगे दी है। यदि उन सत्र अँगरेजी पुस्तकों का मूल्य जोड़ा जावे तो २५२।०) होते हैं । कितने दुःखकी बात है कि हिन्दी साहित्यमें इस विषय पर पुस्तकें ही नहीं हैं। मुझे आशा है कि इस विषयके ज्ञाता हिन्दीमें इस आवश्यक विषय पर पुस्तकें लिख कर हिन्दीका गौरव बढ़ावेंगे।
यद्यपि मैंने इस पुस्तकको सन् १९१५ से लिखना आरंभ किया था और बहुत ही सिरतोड़ मिहनतके साथ इसे चार वर्षों में लिख चुका, तथापि इसमें त्रुटियों का रह जाना संभव है । अत एव उनके लिये में अपने प्रेमी पाठकोंसे क्षमा माँगता हुआ, इसे आद्यन्त पढ़ कर मेरे परिश्रमको सफल करने की प्रार्थना करता हूँ। वन्दे मातरम् । इंद्रसदन,
विनीत, आगर ( मालवा). पौष कृष्ण ८ शनिवार ।
गणेशदत्त शर्मा। १९७७ वि.
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