Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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प्र. सं. ६६४३
देखिये ।
शर्करासमं चूर्णम् (वृहत् )
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भारत-भषज्य रत्नाकरः
' वृहन्छर्करासमचूर्णम् ”
(७२९८) शल्लकीत्वचादियोगः
(ग. नि. । अतिसारा. २ ; वृ. मा. । अतिसारा.) शल्लकीवदरीजम्बूपियाला म्रार्जुनत्वचः । पीताः क्षीरेण मध्वाढ्याः पृथक् शोणित
नाशनाः ॥
(७२९९) शाकवृक्षमूलयोगः
( ग. नि. । मूत्राघाता. २८ ) शर्कराजपयः पीता शाकक्षस्य मूलिका । मूत्ररोधं तथा दाहं नाशयत्यति वेगतः ॥
[ शकारादि
हींग १ भाग, बच २ भाग, बिड नमक ३ भाग, सोठ ४ भाग, अजवायन ५ भाग और हर ६ भाग ले कर चूर्ण बनावें ।
शाक वृक्ष (सागोन) की जड़के चूर्ण को खांडमें मिला कर बकरीके दूधके साथ सेवन करनेसे मूत्रावरोध और दाहका अत्यन्त शीघ्र नाश होता है ।
(७३००) शार्दूलं चूर्णम् (१)
(ग. नि. । चूर्णा. ३) भागवृद्धयुत्तरं हिङ्गुवचाविड महौषधम् । यानीमभयां चैव चूर्ण मस्त्वादिभिः पिवेत् ॥ विबन्धानाहशूलाशवधर्मश्वासोदरापहम् ॥
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इसे मस्तु आदिके साथ सेवन करने से विवन्ध ( मल मूत्रादिका अवरोध ), आनाह, शूल, अर्श, वर्म, श्वास और उदर रोगोंका नाश होता है 1
शल्लकी, बेरी, जामन, पियाल ( चिरौंजी हिग्राबिडशुण्ठयजाजीविजयावाटद्याभिधावृक्ष ), आम और अर्जुनमें से किसी भी वृक्षकी छालके चूर्णको शहद में मिलाकर दूधके साथ सेवन करनेसे रक्तातिसार नष्ट होता है ।
(७३०१) शार्दूलं चूर्णम् (२) (ग. नि. | चूर्णा. ३)
नामयैचूर्ण कुम्भनिकुम्भमूलसहितैर्भागोत्तरं वर्धितैः। पीत कोष्णजलेन कोष्ठकरुजागुल्मोदरादीनयं शार्दूलं प्रसभं प्रमथ्य हरति व्याधीन्मृगौघानिव ॥
हींग १ भाग, बच २ भाग, बिड नमक ३ भाग, सांठ ४ भाग, जीरा ५ भाग, भांग ६ भाग, पोखरमूल ७ भाग, कूठ ८ भाग, निसोत ९ भाग और दन्तीमूल १० भाग ले कर चूर्ण बनावें । इसके सेवनसे कोष्ठरुजा, गुल्म और उदरादि रागोंका अवश्य नाश होता है ।
( मात्रा - १॥ - २ माशे । ) (७३०२) शिरीषादिचूर्णम् (१) ( वृ. यो त । त. १२६ ) शिरीषोदुम्बराश्वत्यचटप्लक्षस्वचां रजः । उलनेन जयति मसूरीं क्लेदमुल्वणम् ॥
सिरसकी छाल, गूलर की छाल, पीपल वृक्षकी छाल, वटकी छाल और पिलखनकी छाल समान भाग ले कर बारीक चूर्ण बनायें ।
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