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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६ प्र. सं. ६६४३ देखिये । शर्करासमं चूर्णम् (वृहत् ) www. kobatirth.org भारत-भषज्य रत्नाकरः ' वृहन्छर्करासमचूर्णम् ” (७२९८) शल्लकीत्वचादियोगः (ग. नि. । अतिसारा. २ ; वृ. मा. । अतिसारा.) शल्लकीवदरीजम्बूपियाला म्रार्जुनत्वचः । पीताः क्षीरेण मध्वाढ्याः पृथक् शोणित नाशनाः ॥ (७२९९) शाकवृक्षमूलयोगः ( ग. नि. । मूत्राघाता. २८ ) शर्कराजपयः पीता शाकक्षस्य मूलिका । मूत्ररोधं तथा दाहं नाशयत्यति वेगतः ॥ [ शकारादि हींग १ भाग, बच २ भाग, बिड नमक ३ भाग, सोठ ४ भाग, अजवायन ५ भाग और हर ६ भाग ले कर चूर्ण बनावें । शाक वृक्ष (सागोन) की जड़के चूर्ण को खांडमें मिला कर बकरीके दूधके साथ सेवन करनेसे मूत्रावरोध और दाहका अत्यन्त शीघ्र नाश होता है । (७३००) शार्दूलं चूर्णम् (१) (ग. नि. । चूर्णा. ३) भागवृद्धयुत्तरं हिङ्गुवचाविड महौषधम् । यानीमभयां चैव चूर्ण मस्त्वादिभिः पिवेत् ॥ विबन्धानाहशूलाशवधर्मश्वासोदरापहम् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसे मस्तु आदिके साथ सेवन करने से विवन्ध ( मल मूत्रादिका अवरोध ), आनाह, शूल, अर्श, वर्म, श्वास और उदर रोगोंका नाश होता है 1 शल्लकी, बेरी, जामन, पियाल ( चिरौंजी हिग्राबिडशुण्ठयजाजीविजयावाटद्याभिधावृक्ष ), आम और अर्जुनमें से किसी भी वृक्षकी छालके चूर्णको शहद में मिलाकर दूधके साथ सेवन करनेसे रक्तातिसार नष्ट होता है । (७३०१) शार्दूलं चूर्णम् (२) (ग. नि. | चूर्णा. ३) नामयैचूर्ण कुम्भनिकुम्भमूलसहितैर्भागोत्तरं वर्धितैः। पीत कोष्णजलेन कोष्ठकरुजागुल्मोदरादीनयं शार्दूलं प्रसभं प्रमथ्य हरति व्याधीन्मृगौघानिव ॥ हींग १ भाग, बच २ भाग, बिड नमक ३ भाग, सांठ ४ भाग, जीरा ५ भाग, भांग ६ भाग, पोखरमूल ७ भाग, कूठ ८ भाग, निसोत ९ भाग और दन्तीमूल १० भाग ले कर चूर्ण बनावें । इसके सेवनसे कोष्ठरुजा, गुल्म और उदरादि रागोंका अवश्य नाश होता है । ( मात्रा - १॥ - २ माशे । ) (७३०२) शिरीषादिचूर्णम् (१) ( वृ. यो त । त. १२६ ) शिरीषोदुम्बराश्वत्यचटप्लक्षस्वचां रजः । उलनेन जयति मसूरीं क्लेदमुल्वणम् ॥ सिरसकी छाल, गूलर की छाल, पीपल वृक्षकी छाल, वटकी छाल और पिलखनकी छाल समान भाग ले कर बारीक चूर्ण बनायें । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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