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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः २७ इसे मसूरिकाकी क्लेद (चिपचिपाहट ) युक्त । । सिरसकी छाल, कूठ, खस और लोध समान कुंसियों पर छिड़कनेसे लाभ होता है। भाग ले कर सबको एकत्र पीस कर चूर्ण बनावें । (७३०३) शिरीषादिचूर्णम् (२) । इसे शरीरपर मलनेसे ग्रीष्म कालमें भी शरी (ग. नि. । ज्वरा. १) रसे पसीनेकी दुर्गन्ध नही आती। शिरीषो लाली कुष्ठं निम्बो देवी हरीतकी। (७३०६) शिवादिचूर्णम् मध्वाज्यभक्षितं चूर्ण विषमज्वरनाशनम् ॥ (यो. त.। त. ४३) सिरसकी छाल, लांगली (कलियारी) की जड़, | शिवा वचा हि विषा कलिङ्गं रुचकं समम् । कूल, नीमको छाल, हुल हुल और हरै समान भाग कर्षमुष्णाम्बुना पेयमनुपानं हि शूलिभिः । ले कर चूर्ण बनावें। इसे शहद और घीमें मिला कर सेवन करनेसे हरं, बच, हींग, अतीस, इन्द्रजौ और काला विषम ज्वरका नाश होता है। नमक (संचल) समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे बूल (मात्रा-४-६ रत्ती।) नष्ट होता है। (७३०४) शिरीषादियोगः मात्रा-१। तोला । ( व्यवहारिक मात्रा(यो. र. वं. से. । विषा.) | १|| माशा) शिरीषपुष्यस्वरसे सप्ताह मरिच सितम्।। भावित सर्पदष्टानां पाने नस्याउने हितम् ।। (७३०७) शिवाय चूर्णम् : सिरसके फूलोंके ( या पत्तोंके ) स्वरसमें ( ग. नि. । मूत्रकृच्छ्रा ७) सहजनेके बीज ( श्वेत मिर्च ) भिगो दें और एक शिवा पिपलिका द्राक्षा बीजं धवकुरण्टयोः। सप्ताह तक भीगे रहने दें एवं तदनन्तर ( छायांमें | कर्कटयाश्च कुवेराक्ष्या बीजं पाषाणभेदतः॥ सुखाकर ) पीस लें। एषां चूर्ण समांशानां भक्षितं मधुना समम् । इसे पिलाने, इसकी नस्य देने और इसका अश्मरीं शर्करां हन्ति मूत्रकृच्छ्रे च दारुणम् । अंजन लगानेसे सर्पविष नष्ट होता है। हर, पीपल, मुनक्का, धवके बीज, कुरण्ट (७३०५) शिरीषाघुवर्तनम् (कण्टाई) के बीज, काकड़ासिंगी, करञ्जके बीज (रा. मा. । कुष्ठा. ८) और पाषाण भेद समान भाग ले कर चूर्ण शिरीषपञ्चकोशीररोधोद्वर्तितविग्रहः। | बनावें। ग्रीष्मोष्मणाऽपि नामोति दौर्गन्ध्यं जातु मानवः। इसे शहद के साथ सेवन करनेसे अश्मरी, १. पाठभेद-शिरीषपत्रस्वरसे. शर्करा और दारुण मूत्र कृच्छ्रका नाश होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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