Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
२४
www. kobatirth.org
भारत-भैषज्य रत्नाकरः
इसे रात्रि के समय गोदुग्धके साथ सेवन करनेसे कामशक्ति इतनी प्रबल हो जाती है कि बार बार बी समागम करने पर भी तृप्ति नहीं होती ।
( मात्रा -- १॥ - २ माशे । ) (७२९०) शतावर्यादिचूर्णम् (२) ( यो. र. । वाजीकरणा . )
शतावरी गोक्षुर काश्वगन्धा पुनर्नवानागबलानुसल्या । घृतेन खण्डेन तु भक्षणीयाः क्षीणा नरा नागबला भवन्ति ॥ शतावर, गोखरू, असगन्ध, पुनर्नवा ( बिसखपरा), नागबला (गंगेरन) की जड़ और मूसली समान भाग ले कर चूर्ण बनावें ।
इसमें घी और खांड मिला कर सेवन करने से क्षीण पुरुष भी हाथी के समान बलवाले हो जाते हैं ।
(७२९१) शतावर्यादिचूर्णम् (३)
( यो. र. । वाजीकरणा ; न. मृ. । त. ३ ) शतावरीनागबलाविदारीत्रिकण्टकैरामलकी फलान्वितैः । विचूर्णितैः पञ्चभिरेकशः पृथक् प्रकल्पितैर्वा घृतमाक्षिक प्लुतैः ॥ इति प्रयोगाः षडिमे भिषग्वरैरुदीरिताः शर्करया समन्विताः । नृणां मदान्ध प्रमदोपसर्पिणां प्रधानधातोरतिरेककारणम् ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[ शकारादि
शतावर, नागबला (गंगेरन), विदारीकन्द, गोखरु और आमलेका चूर्ण पृथक् पृथक् या समान भाग मिला कर खांड, घी और शहद के साथ सेवन करने से अत्यन्त वीर्यवृद्धि होती है । ( मात्रा - ३-४ माशे । ) (७२९२) शतावर्यादिचूर्णम् (४) ( व. से. । रसायना. ) शतावरी मुण्डतिका गुडूची सहस्तिकर्णा सह तालमूली । एतानि कृत्वा समभागयुक्त्या सर्पिर्मधुभ्यां सततं विलयात् ॥ जराsजामृत्युविमुक्तदेो
भवेश्वरः कान्तिबालादियुक्तः । विभाति देवोपम एव नित्यं
शुद्धामयो भूरिविशुद्धबुद्धिः ॥
शतावर, मुण्डी, गिलोय, हस्तिकर्णा और तालमूली समान भाग ले कर चूर्ण बनावें ।
इसे घी और शहद में मिला कर सेवन करसे जरा. व्याधि और (अकाल मृत्युका नाश हो कर कान्ति, बल और बुद्धि आदिकी वृद्धि होती है ।
(७२९३) शतावर्यादिचूर्णम् (५) ( वै. मृ. । विषय २८ ) शतावरीनागबलात्मगुणेक्षुरश्वदंष्ट्रातिलमाषचूर्णम् । यः सिताढ्य निशि तेन पेयं कान्ता शर्त यस्य गृहे विभाति ॥
For Private And Personal Use Only