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भक्तामर यंत्र - ५
Bhaktamara Yantra - 5
सोऽहं तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश! झीँ झीँ झीँ झी झी झी मी न ही अहँ णमो अणंतोहिजिणाणं।" । ग्रीग्री ग्रीग्री ग्रीग्री ग्री
नाभ्येति किं निजशिशोःपरिपालनार्थम् ॥५॥ झी मी मी झी की नीं
नमो नमः स्वाहा।" ग्रीग्री ग्री ग्रीग्री ग्री
ग्री ग्रीग्री ग्रीग्री ग्री न ह्रीं श्रीं क्लीं क्रौं सर्वसंकट
झी झी झी की झीं की कर्तुस्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः।
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ऋद्धि-ॐ ह्रीँ अर्ह णमो अणंतोहिजिणाणं । मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं क्रौँ सर्वसंकटनिवारणेभ्यः सुपार्श्वयक्षेभ्यो नमो नमः स्वाहा ।
प्रभाव-आँख के सारे रोग दूर होते हैं । Curing of eye-diseases.
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